बुंदेली वीरांगनाओं के पराक्रम की प्रतीक हैं रानी लक्ष्मीबाई

बुंदेलों ने गोरखगिरि के ऊपर मनाई लक्ष्मीबाई जयंती

महोबा। बुंदेली वीरांगनाओं के पराक्रम की प्रतीक वीरांगना लक्ष्मीबाई का 195 वां जन्मोत्सव बुंदेलों ने आज गोरखगिरि पर्वत के ऊपर सिद्ध बाबा परिसर में मनाया एवं अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उनके संघर्ष को याद किया। हाथ में तलवार लेकर दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांध घोड़े बादल पर सवार रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर पर बुंदेलों ने माल्यार्पण किया और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर बुंदेलखंडी ने बताया कि यहां तो छोटे-छोटे बच्चे गाते हैं “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी”। रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्से यहां सबकी जुबान पर रहते हैं। अवन्तीबाई लोधी के बाद रानी लक्ष्मीबाई ऐसी दूसरी वीरांगना थी जो 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ते-लड़ते बलिदान हो गई थी। उन्होंने अंग्रेजों की राज्य हड़प नीति का ऐसा प्रचंड विरोध किया कि अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिल गयीं। 18 जून,1858 को ग्वालियर के कोटा की सराय में अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए वे मात्र 29 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुई। उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर तत्कालीन जनरल ह्यूरोज भी उनकी तारीफ करने को मजबूर हो गया। उनका जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी के ब्राह्मण परिवार मोरोपंत तांबे और भागीरथी देवी के घर पर हुआ था और 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर से हो गया। फिर उनका नाम मणिकर्णिका से रानी लक्ष्मीबाई हो गया। राजा की मृत्यु के बाद लक्ष्मीबाई ने जिस बहादुरी से अंग्रेजों से मुकाबला किया, वह नारीशक्ति की मिशाल बन गयीं। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में बुंदेलखंड का नाम राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया। झलकारी बाई उनकी हमशक्ल थी एवं महोबा में उनकी विशाल मूर्ति लगी है।
इस मौके पर अवधेश गुप्ता, डा. देवेन्द्र पुरवार, प्रवीण, अजय, प्रेम चौरसिया, उपेन्द्र सुल्लेरे, मनीष जैदका, माधव खरे, पवन, दीपू सोनी, नरेन्द्र मिश्रा, बुधौलिया जी, महेन्द्र चौरसिया, संजय, ऋषभ अग्रवाल, सिद्धे सेन, रामदास त्यागी, नीरज पुरवार, विकास, ओम, मंजू सोनी, अंजली, राधिका, रश्मि, ऋषिका, डाली समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

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